Apple service centre success story
8वीं पास लड़के ने मेहनत से बड़े-बड़े इंजीनियरों को दी टक्कर, कैसे बना कंप्यूटर का उस्ताद
यह कहानी सबसे अलग एक ऐसे इंसान की है जिसे गरीबी की वजह से तो पढाई छोड़नी पड़ी लेकिन उसके अंदर की काबिलियत ने उसे जिंदगी में ऐसे पायदान पर बिठा दिया, जहाँ पहुंचना सच में कई लोगों का सपना होता है। इस शख्स ने सिर्फ 8वीं पास होते हुए वो कर दिखाया जो बड़े-बड़े हार्डवेयर इंजीनियर्स भी नहीं कर पाते। एक वक़्त पर इस शख्स को दुसरे की दूकान पर वेटर का काम करना पड़ता था लेकिन अपनी खूबी के दम पर आज 3 करोड़ के टर्नओवर वाली कंपनी के मालिक हैं।
जी हाँ हम बात कर रहें हैं ‘एप्पल डॉक्टर’ से नाम से मशहूर हरीश अग्रवाल की सफलता के बारे में। एक मध्यम-वर्गीय परिवार में पैदा लिए हरीश का परिवार उनकी पढ़ाई का खर्च उठा सकने में असमर्थ था। उनके बड़े भाई इंजीनियरिंग पढ़ रहे थे जिसमें पहले ही काफी खर्चा हो चुका था। इसी दौरान पिता की नौकरी भी चली गई। हरीश के लिए ये काफी मुश्किल के दिन थे। इन मुश्किल भरे दिन से बाहर आने के लिए हरीश ने पढाई छोड़ काम करने का निश्चय किया। इसी कड़ी में उसने एक कम्प्यूटर हार्डवेयर सर्विस सेंटर में टेक्निशियन के रूप में काम करना शुरू कर दिया। कुछ दिनों तक काम करने के बाद साल 2007 में हरीश ने एक पुराना कम्प्यूटर खरीदा और उसेे खोलकर रिपेयरिंग का काम सीखना शुरू कर दिया।
कुछ दिन तक रिपेयर का काम सीखने के बाद हरीश ने नौकरी की तलाश में बंगलौर का रुख किया। साल 2011 में इन्होनें बंगलौर के एक स्टार्टअप में अप्रेंटिस के रूप में 2,000 रुपए में काम शुरू किया। कुछ दिनों तक यहाँ काम करने के बाद हरीश ने यह काम छोड़, एक होटल में वेटर के रूप में काम करना शुरू कर दिए। आप यह सोचकर हैरान होंगें की भला यह वेटर की नौकरी करना क्यों शुरू कर दिया? इसलिए क्यूंकि उन्हें यहाँ ज्यादा सैलरी मिल रही थी और पैसे कमाना हरीश के लिए सबसे बड़ी प्राथमिकता थी। इसी बीच उनके भाई को सिस्को में नौकरी मिल चुकी थी। उन्होंने हरीश को एक मोबाइल रिटेलर शॉप में काम दिलवा दिया।
हरीश के लाइफ में यह टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। यहां इन्होनें मोबाइल फोन व लैपटॉप रिपेयर करना सीखा। मोबाइल सर्विसिंग से लेकर कम्प्यूटर्स की नॉलेज ने हरीश की तरक्की का रास्ता खोल दिया।
मोबाइल रिपेरिंग में हरीश की गहरी पकड़ ने उसे उस मोबाइल शॉप में पार्टनर बना दिया लेकिन जब पार्टनर ने ज्यादा शेयर्स की मांग की तो हरीश ने अकेले आगे बढ़ने का फैसला किया। उसने ख़ुद की एक रिपेयर शॉप खोली और अपना धंधा शुरू कर दिए।
इसी दौरान एक दिन उनके एक ग्राहक ने उनकी दुकान पर एक मैकबुक रिपेयर करवाने आया। उस वक्त हरीश को एप्पल के बारे में कुछ भी पता नहीं था। लेकिन उसनें उसे सफलतापूर्वक रिपेयर कर लिया। बस यहीं से हरीश के लिए एक नया रास्ता खुला। इसके बाद वह अपना पूरा वक्त एप्पल डिवाइसेज को समझने और उनकी मरम्मत के नए तरीके खोजने में बिताने लगा। जल्द ही बेंगलुरु में कोरामंगला में 2 लाख की पूंजी के साथ हरीश ने अपना सर्विस सेंटर एप्पल रिपेयर्स स्थापित किया।
हरीश ने ख़ुद की दूकान तो खोल ली लेकिन इन सब के पीछे उन्हें अनगिनत संघर्षों का सामना करना पड़ा। दूकान खोलने के बाद सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि उस वक़्त एप्पल की कोई रिप्लेसमेंट पॉलिसी नहीं थी और स्पेयर पार्ट हासिल करना बेहद मुश्किल था। लेकिन इसका भी हल हरीश ने निकाल लिया। इन्होनें रिपेयरिंग के लिए 100 प्रतिशत एप्पल पार्ट्स लगाना तय किया और पूरी दुनिया से बल्क में सस्ती कीमत पर एप्पल प्रॉडक्ट खरीदे जाएं, उन्हें डिस्मेंटल करके उन हिस्सों का इस्तेमाल रिप्लेसमेंट के लिए किया जाए।
बस उनकी यह तकनीक काम कर गई और बिजनेस तेजी से बढ़ने लगा। आज हरीश एप्पल सर्टिफाइड मैक टेक्निशियन हैं। बमुश्किल कुछ कक्षाएं पढ़े हरीश ने जब कम्प्यूटर की एबीसीडी सीखने में अपना पूरा दमखम लगा दिया तो यही साबित हुआ कि महज डिग्रियाें के बल पर ही सफलता नहीं मिलती, टैलेंट हो तो कोई भी मंजिल हासिल करना मुश्किल नहीं।
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