अच्छी-खासी नौकरी छोड़कर इस नौजवान ने वो कर दिखाया जो सरकार भी नहीं कर सकी
हर एक बूँद की अपनी अलग पहचान होती है, आज की कहानी ऐसी ही फिलॉसफी पर आधारित है। बूँद इंजीनियरिंग और डेवलपमेंट प्राइवेट लिमिटेड के फाउंडर रुस्तम सेनगुप्ता की आज की हमारी कहानी कुछ हट कर है। एक व्यक्ति जिसके पास संसार की सारी सुख-सुविधाएँ उपलब्ध थी उसने वह सब कुछ छोड़ समाज में गहरा प्रभाव डालने वाले उद्यम को अपनाया।
रुस्तम ने जब पश्चिम बंगाल में अपने पैदायशी गांव समेत देश के अन्य छोटे-छोटे गांवों का दौरा किया और लोगों से आमने-सामने बात की, तब देश की कड़वी सच्चाई से उनका सामना हुआ। गांव के लोगों के लिए न तो पर्याप्त बिजली उपलब्ध थी और न ही पीने को साफ पानी। जल्द ही उन्होंने यह महसूस किया कि यह कोई पृथक समस्या नहीं थी बल्कि भारत के एक चौथाई लोग इस परिस्थिति का शिकार थे।
अगस्त 2009 में की गयी उस एक यात्रा ने इस कहानी के रुख को पूरी तरह से बदल दिया। वे सिंगापुर के एक एमएनसी बैंक में फाइनेंस मैनेजर के पद पर कार्यरत थे। उनकी वार्षिक तनख्वाह एक लाख बीस हज़ार यूएस डॉलर थी। इस यात्रा के बाद उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ने का फैसला किया। नौकरी छोड़ने के तुरंत बाद वे भारत लौट आये। यहाँ आकर उन्होंने एक सामाजिक उद्यम बूँद की नींव रखी। यह संस्था विश्व की बड़ी चुनौतियों, जैसे पर्याप्त बिजली, साफ पीने का पानी और गांव के इलाकों में कीट-नियंत्रण जैसी समस्याओं को सुलझाने का प्रयास करती है।
‘बूँद डेवलपमेंट किट’ के जरिये गांव के लोगों को सोलर लैंप, वाटर फ़िल्टर (22 लीटर का दो कैंडल वाला फ़िल्टर जिसमें लगभग 90 फीसदी बैक्टीरिया तक ख़त्म हो जाते हैं) और मच्छरदानी आदि बहुत ही कम कीमत में मुहैया कराते हैं। इस काम में उनकी मदद भारत के गांव के डिस्ट्रीब्यूशन पार्टनर्स, एनजीओ, सामाजिक निवेशकों, माइक्रो फाइनेंस इंस्टीटूशन और बैंक करते हैं।
वर्तमान में बूँद ने राजस्थान और यूपी जिले भर में 6 ऊर्जा हब बनाया है और सोलर ऊर्जा का उपयोग करके लगभग 50 हजार लोगों को फायदा पहुंचा रहा है। ज्यादा से ज्यादा लोगों की स्थिति बेहतर बनाना और स्वच्छ ऊर्जा पहुँचाना रुस्तम का एक मात्र धेय है।
बूँद एक नया एपिक-ग्रिड सिस्टम ले कर आया है, जिसका भुगतान फिक्स्ड है। इसके द्वारा ग्राहक अपनी पोर्टेबल बैटरीज को सेंट्रल चार्जिंग स्टेशन में जाकर चार्ज कर सकता है और उससे अपने घर को रोशन कर सकता है। इसमें ग्राहकों को महीने का 50 से 100 रुपये तक का खर्च आता है। बूँद 40 वाट्स के सोलर पॉवर होम लाइटिंग सिस्टम ले कर आया है जिसमें तीन लाइट्स है और यूपी के लगभग सभी जिले में एक मोबाइल चार्जिंग पॉइंट की भी व्यवस्था की है ।
सितम्बर 2010 में बूँद ने लदाख में लैंडस्लाइड से तहस-नहस हुए परिवारों के लिए अपने 90 किट भेजे थे।
29 वर्षीय रुस्तम का जन्म और पढ़ाई-लिखाई दिल्ली में ही हुई। उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में अपनी मास्टर डिग्री पूरी की। इसके अलावा उन्होंने सिंगापूर से एमबीए भी किया। उनका यह मानना है कि विकास के मॉडल्स लम्बे समय तक चलने वाले और सामाजिक प्रभाव डालने वाले होने चाहिए। देश की सामाजिक जिम्मेदारियों और जलवायु परिवर्तन के बारे में लोगों को जागरूक करना उनका उदेश्य है।
भारत में सामाजिक उद्यम फूलों से भरा बिस्तर नहीं है। बहुत सारी कठनाइयों से उनका सामना हुआ है। कठिन परिस्थितियों को पार कर उन्होंने गांव में उजाला फैलाया और लोगों की जिंदगियों को बेहतर बनाने का प्रयास किया और सफलता भी हासिल की। अपने लिए तो हर कोई जीता है पर दूसरों का दर्द समझ कर उनकी स्थिति बेहतर बनाने का प्रयास रुस्तम सेनगुप्ता जैसे महत्वाकांक्षी लोग ही कर पाते हैं।
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